रहस्यदर्शी -- व्यक्तित्व ------अलबर्ट आइन्सटीन

रहस्यदर्शी -- व्यक्तित्व अलबर्ट आइन्सटीन -------------- ( 14 मार्च , 1879 -- अप्रैल 18 , 1955 ) मन स्मृति है , बुद्दिमत्ता नही | बुद्दिमत्ता तब होती है जब तुम नई बातो का , नई मुश्किलों का सामना करते हो और तुम्हारा अस्तित्व उन नई समस्याओं को प्रतिबिबिम्बित करता और उसके समाधान खोजता है | तुम्हे उनके बारे में कभी नही बताया गया , तुमने कभी उनका अध्ययन नही किया | तुम्हारी स्मृति कोई उत्तर देने में पूरी तरह से अक्षम होती है | बड़े -- बड़े बुद्दिजीवी लोग नई समस्याओं का सामना करने में सदा कठिनाई में पड़ जाते है | ऐसा कहा जाता है कि एक दिन अलबर्ट आइन्सटीन , संसार के महानतम गणितज्ञो में से एक , विश्विद्यालय जाने के लिए बस में सधा और कंडक्टर को पैसे दिए | कंडेक्टर ने उसे टिकट और बचे हुए कुछ पैसे वापस किये | उसने पैसे गिने और कहा : ' क्यों भाई , तुम मुझे धोखा दे रहे हो ? " कंडक्टर ने कहा : ' शायद , कोई भूल हो गयी ... मुझे दुबारा गिनने दीजिये | ' उसने पैसे गिने और अलबर्ट आइन्सटीन ने कहा : महानुभाव , ऐसा लगता है आपको गिनती - विनती नही आती , आप जानते ही नही कि गुना -- भाग कैसे किया जाता है | कृपया चुप रहे और बैठ जाए | ' आइन्सटीन ने घर आकर अपनी पत्नी से कहा : ' मैं एकदम घबडा गया ; सारी बस हंस रही थी | वह तो अच्छा हुआ कि बस में कोई और प्रोफ़ेसर या विद्यार्थी न था ; किसी को पता न था कि मैं अलबर्ट आइन्सटीन हूँ | और कंडक्टर कह रहा था , ' आपको गिनती नही आती | ' और मैं मानवता के इतिहास में सर्वाधिक बड़ी संख्याओं के साथ कम किया है , मेरा सारा काम ही संख्याओं का है | मगर मैंने सोचा कि इस बारे में शोर न मचाना ही बेहतर है | तुम जरा ये पैसे गिनो और बताओ कि वह मुझे धोखा दे रहा था या कि मैं ही गलत था ? पत्नी ने पैसे गिने और बोली : ' ये बिलकुल ठीक है | तुम्हारी टिकट , जो पैसे तुमने उसे दिए , और जो उसने लौटाए उन्हें देख कर तो यही लगता है कि पूरा हिसाब एकदम सही है | और लगता यही है कि तुम गणित नही जानते ! तुम बड़ी संख्याओं के इतने आदि हो गये हो ... संख्याय जिसने आगे सैकड़ो शून्य लगे रहते है .. छोटी -- मोती संख्याओं को तो तुम भूल ही गये हो | तुम आगे कभी किसी से कुछ न कहना ; यदि कभी ऐसी स्थिति आ भी जाए , तो चुप ही रहना | ' मेरे एक मित्र , डाक्टर राम मनोहर लोहिया से मिलने गये थे -- डाक्टर लोहिया की शिक्षा जर्मनी में हुई थी | और वे नियत समय पर मिलने के लिए पहुचे गये | अलबर्ट आइन्सटीन की पत्नी ने खा ; ' आपको कुछ देर प्रतीक्षा करनी होगी | मैं सुनिश्चित रूप से नही बता सकती कि आपको कितनी देर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी , क्योकि वे स्नान गृह में है और जब वे स्नान गृह में होते है तब उन्हें कोई बाधा पहुचाये , यह उन्हें बिलकुल पसंद नही है | और किसी को पता नही कि वे कितनी देर बाथरूम में रहेगे | ' डाक्टर लोहिया ने कहा : ' ठीक है , मैं प्रतीक्षा कर्ता हूँ | ' उन्होंने सोचा कि पन्द्रह मिनट , आधा घंटा -- कोई स्नान - गृह में इससे अधिक और क्या ठहरेगा ? मगर छह घन्टे बीत गये .. पत्नी ने उन्हें नाश्ता कराया , दोपहर का भोजन कराया और लोहिया ने कहा : ' हे भगवान , वे अभी भी तब में बैठे हुए है ? आखिर वे कर क्या रहे है ? पत्नी ने कहा : ' शुरू -- शुरू में जब हमारी शादी हुई थी मैं उन्हें बाधा पहुचा देती थी तो वे सारा दिन गुस्से में रहते थे | वे चीजे फेकते , सब तरह के उपद्रव करते , चीखते , चिल्लाते | वे बहुत परेशान हो जाते थे , क्योकि गणित की साड़ी खोज उन्होंने अपने तब में बैठकर साबुन के बुलबुलों के साथ ही की है | वे बुलबुलों से साबुन के बुलबुलों से खेलते रहते है ..... उनके लिए ये बुल;बुले ही तारे है | और वे गणित बिठाते रहते है . मैं नही जांति कि कैसे , परन्तु वे हिसाब -- किताब लगाते रहते है -- उन्होंने स्नान गृह की सब दिवालो पर लिखा हुआ है | मैं आपको उनका स्नान गृह दिखाउगी , वह सब गणित ही गणित है | ' छ घन्टे बाद अलबर्ट आइन्सटीन बाहर निकला और बोला : ' अच्छा तो आप आ गये ? आप बिलकुल ठीक समय पर आये है | जैसे ही मैं स्नान -- गृह से बाहर निकला आप यहाँ बैठे हुए है | ' डाक्टर लोहिया ने कहा : मैं यहाँ छ घन्टे से बैठा हुआ हूँ | ' वह बोला : हे भगवान ! छ घन्टे हो गये .. मुझे क्षमा कर दो क्योकि जब मैं अपने तब में साबुन के बुलबुलों के साथ होता हूँ , मैं समय को भूल ही जाता हूँ | तब बस गढ़ -- नक्षत्रो और सितारों के बारे में नये समीकरण , उनकी दुरिया -- तुम मेरा स्नान गृह देखो | ' डाक्टर लोहिया ने मुझे बताया कि ' वे दोनों स्नान गृह में ले गये | सब दीवालो पर बड़ी -- बड़ी समीकरण लिखी हुई थी ' उनकी समझ से बाहर था वे तो गणितज्ञ नही थे | डाक्टर लोहिया ने कहा " ' आपने तो अपने स्नान गृह को प्रयोगशाला बना रखा है | ' आइन्सटीन ने कहा : ' मैंने नही बनाई यह अपने आप ही प्रयोगशाला बन गयी है | ये साबुन के बुलबुले किसी न किसी रूप में सितारों से मिलते -- जुलते है " अब यह आदमी श्रेष्ठ्तम गणितज्ञ और बुद्दी के चरम शिखर पर पहुचे हुए व्यक्तियों में से एक था | परन्तु वह एक अत्यन्य कुरूप और अमानवीय घटना का कारण बना जो कि गैर -- बुद्दिमत्तापूर्ण थी | वही हिरोशिमा और नागासाकी में हुते भीषण नरसंहार का कारण था , क्योकि उसने अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट को एक पत्र लिखा : मैं परमाणु बम बना सकता हूँ | और आपने पास परमाणु बम का होना ही पर्याप्त होगा , उन्हें छोड़ने की कोई आवश्यकता नही पड़ेगी | क्योकि जर्मनी और जापान से आत्मसमर्पण कराने के लिए परमाणु बम का पास होना ही काफी है | ' मगर यह एक बहुत ही नासमझी भरा , नादानी पूर्ण कार्य था जो उसने किया | रूजवेल्ट ने उसे अनुमति दे दी , साथ ही परमाणु बम बनानेके लिए साड़ी सुविधाए भी प्रदान की | उसने परमाणु बम बनाये और एक बार जब परमाणु बम बन गये , वे राजनितिज्ञो के हाथ में पहुच गये | आइन्स्टीन ने उन्हें लिखा -- रूजवेल्ट अब राष्ट्रपति न था , ट्रूमैन राष्ट्रपति बन गया था , उसने ट्रूमैन को लिखा कि --- ' उन बमो का प्रयोग नही किया जाना चाहिए | पत्र में यही मेरी पहली शर्त थी | ' लेकिन ट्रूमैन ने पत्र का उत्तर तक नही दिया | कौन प्रवाह करता है ? तुमने अपना कम कर दिया , तुम्हे अपने काम की कीमत मिल गयी | अब तुम बमो के स्वामी नही हो , बम तो सरकार के है | और ट्रूमैन ने उन बमो को हिरोशिमा और नागासाकी पर बिना किसी कारण के गिराया | जर्मनी तो पहले ही पराजित हो चूका था , उसने अपनी पराजय स्वीकार भी कर ली थी | और जापान किसी भी दिन आत्समर्पण के लिए तैयार था .. विशेषज्ञ कहते है कि अधिक से अधिक एक या दो सप्ताह के भीतर जापान समर्पण करने ही वाला था | जर्मनी के बिना जापान युद्द में अकेला टिक नही सकता था और उन लोगो को जिनका युद्द से कुछ लेना देना न था छोटे बच्चे स्त्रिया वृद्द मान बाप गर्भवती औरते जिन्हें युद्द से कोई मतलब न था उन्हें नष्ट कर देने की कोई आवश्यकता न थी | और यह कोई छोटी संख्या नही थी -- हर नगर में एक लाख से अधिक व्यक्ति रहते थे | दो लाख व्य्कतियो को .... लेकिन ट्रूमैन इन बमो का जितनी जल्दी से जल्दी संभव हो सके उपयोग करने में उत्सुक था क्योकि जापान ने समर्पण कर दिया , तो फिर कोई अवसर नही छोड़े जा सकते थे | फिर कोई अवसर नही बचेगा , बहाना नही मिलेगा | और वह प्रयोग करना चाहता था | वह अणु -- बमो की शक्ति -- परिक्षण का एक प्रयोग था | दो लाख व्यक्ति क्षण भर में जलकर ख़ाक हो गये | और कई -- कई पीढियों तक उन दो बमो का असर जारी रहेगा , न केवल मनुष्यों में ; मछलियों में पशुओ में वृक्षी में सब जगह रेडियेशन व्याप्त रहेगा | उस समय अलबर्ट आइन्सटीन रो रहा था और कह रहा था , ' मैं एक बुद्दिहींन आदमी हूँ | मैं एक सरल सी बात नही देख पाया ; कि एक बार तुम राजनितिज्ञो के हाथ में शक्ति सौप दो , फिर यह तुम्हारे हाथ से बाहर की बात हो जाती है , फिर तुम कुछ नही कर सकते | ' मृत्यु के समय उसके अंतिम शब्द थे ; ' अपने अगले जन्म में मैं एक नल ठीक करने वाले कारीगर की भाँती पैदा होना पसंद करूंगा न कि एक भौतिक -- विद की भांति , क्योकि मैं ऐसे हत्यारे कृत्य पुन: नही करना चाहूंगा | और यह मेरी मूढ़ता था ... हालाकि जो प्रस्ताव उसने रखा था वह बौद्दिक जरुर था , पर विवेकपूर्ण जरा भी न था : शक्ति का प्रदर्शन ही पर्याप्त है ' | लेकिन राजनितिज्ञ अपनी शक्ति दिखाने के लिए इतने आतुर , इतने भूखे है कि जब तक कि सारी दुनिया उसे महसूस न कर ले . वे स्वंय को रोक पाने में असमर्थ होते है | प्रस्तुती --- सुनील दत्ता साभार अनंत से अनंत की ओर ------ ओशो -------( स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक )