शमशान

शमशान
चुप्पी ख़ामोशी उदासी ओढ़े
हर शमशान
लाशों, लकड़ियों और कफन के
इंतजार में सिद्दत के साथ
मुद्दत से अपनी भूमिका में खड़ा है
न जाने कितनी लाशें
अब तक हो चुकी होंगी पंचतत्व में विलीन
गुमनामी के अँधेरे में खो चुके हैं -
न जाने कितने हाड़-मास के पुतले
स्मृतियों में कुछ शेष रह जाती हैं आकृतियाँ
कुछ आकृतियाँ छोड़ जाती हैं
अपने कामों का इतिहास|
-सुनील दत्ता

शहीद दिवस विशेष : क्रांति और जीवन भगत सिंह

क्रांति हौव्वा नही ; भगत सिंह को दो तरह का हौव्वा बनाकर पेश किया जाता रहा है |एक तो व्यहारिकता का कि भगत सिंह पड़ोसी के घर ही अच्छा लगता है -अपने घर में उसका होना आज कि परिस्थितियों में वांछित नही |दूसरा आदर्श का कि विचारो -कार्यशालाओ से भगत सिंह को नही अपनाया जा सकता -उसके लिए जेल और मृत्यु की कामना करने की जरूरत होती हैं |इन दोनों पूर्वाग्रहों के पीछे भगतसिंह की वह छवि काम कर रही होती है जो उनके दो बेहद प्रचलित प्रकरणों -साड्स -वध और असेम्बली -बम धमाका -को एकान्तिक रूप से देकने से बनी हैं | क्योंकि येही प्रकरण उनकी लोकप्रिय छवि का आधार भी बनाए जाते है ,लिहाज़ा उपरोक्त पूर्वाग्रहों को सार्वजनिक रूप से मीन-मेख का सामना प्राय ; नही करना पड़ता |
पर भगतसिंह को पुरवाग्रहो से नही ,तर्क से जानना होगा -एकान्तिक रूप से नही परिपेक्ष में देखना होगा | वे क्रन्तिकारी थे, आतंकवादी नही -तभी उन्होंने कभी भी सांडर्स -वध को ग्लोरिफाई नही किया और असेम्बली में बम फोड़ते समय यह सावधानी भी रखी कि किसी की जान न जाये |वे हाड -मांस के ऐसे मनुष्य थे जिसके प्रेम ,स्वप्न ,जीवन ,राजनीत ,देश -प्रेम गुलामी और धर्म जैसे विषयों पर बेहद लौकिक विचार थे |तभी उन्होंने मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के हर स्वरूप -साम्राज्यवाद ,साम्प्रदायिकता ,जातिवाद ,असमानता ,भाषा वाद ,भेदभाव इत्यादि का पुरजोर विरोध किया |फांसी से एक दिन पूर्व साथियों को अंतिम पत्र में उन्होंने लिखा -स्वाभाविक है कि जीने कि इच्छा मुझमे भी होनी चाहिए ,मैं इसे छिपाना नही चाहता |जब उन्होंने मृत्यु को चुना तब भी लौकिकता और तार्किकता के दम पर ही |अगर वे सिर पर कफन बांधे मृत्यु के आलिंगन को आतुर कोई अलौकिक सिरफिरे मात्र होते तो सांडर्स -वध के समय ही फांसी का वरण कर लेते |सांडर्स -वध के बाद फरारी और असेम्बली बम कांड के बाद ,जब वे भाग सकते थे ,समपर्ण उनकी अदम्य तार्किकता का ही परिचायक है |भगतसिंह से दोस्ती का मतलब उनकी इसी लौकिकता और तार्किकता को आत्मसात करना भी है |इन अर्थो में यह कठिन रास्ता है -न कि जेल ,पुलिस ,मौत जैसे सन्दर्भ में | क्या हम ईमानदारी ,सच्चाई ,साहस ,भाईचारा ,बराबरी और देशप्रेम को अपने जीवन का अंग बनाना चाहते हैं ? क्या हम शोषण के तमाम रूपों को पहचानने और फिर उनसे लोहा लेने कि शुरुवात खुद से ,अपने परिवार से ,अपने परिवेश से कर सकते है ?
यदि हाँ ,तो घर -घर में भगत सिंह होंगे ही जो शोषण के तमाम पारिवारिक ,सामाजिक ,जातीय ,लैगिक ,राजनैतिक ,साम्राज्यवादी व आर्थिक रूपों कि पहचान करेंगे और उनसे लोहा लेंगे |जेल से भगत का कहा याद रखिए -'क्रन्तिकारी को निरर्थक आतंकवादी कारवाइयो और व्यकितगत आत्म -बलिदान के दूषित चर्क में न डाला जाये |सभी के लिए उत्साह वर्धक आदर्श ,उद्देश्य के लिए मरना न होकर उद्देश्य के लिए जीना -और वह भी लाभदायक तरीके से योग्य रूप में जीना -होना चाहिए |
भगतसिंह और बटुकेश्वर दत ने २२ दिसम्बर १९२९ को जेल से लिखे 'माडर्न रिव्यू 'के सम्पादक को प्रति -उत्तर में इन्कलाब जिंदाबाद नारे को परिभाषित करते हुए क्रांति से जोड़ा -दीर्घकाल से प्रयोग में आने के कारण इस नारे को एक ऐसी विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है ,जो सम्भव है भाषा के नियमो एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध न हो पाए ,परन्तु इसके साथ ही इस नारे से उन विचारो को पृथक नही किया जा सकता ,जो इसके साथ जुड़े हुए हैं |ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीकृत अर्थ का घोतक हैं ,जो एक सीमा तक उनमे पैदा हो गये हैं तथा एक सीमा तक उनमे निहित है |क्रांति (इन्कलाब )का अर्थ अनिवार्य रूप में सशस्त्र आन्दोलन नही होता |बम और पिस्टल कभी कभी क्रांति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते है |इसमें भी सन्देह नही है कि कुछ आंदोलनों में बम एवं पिस्टल एक महत्त्व पूर्ण साधन सिद्ध होते है ,परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्टल क्रांति के पर्यायवाची नही हो जाते |विदोढ़ को क्रांति नही कहा जा सकता ,यद्धपि यह हो सकता है कि विदोढ़ का अंतिम परिणाम क्रांति हो |.........क्रांति शब्द का अर्थ 'प्रगति के लिए परिवर्तन कि भावना एवं आकाक्षा है |लोग साधारण तया जीवन कि परम्परा गत दशाओं के साथ चिपक जाते है और परिवर्तन के विचार से ही कापने लगते है |
यह एक अकर्मण्यता कि भावना है , जिसके स्थान पर क्रन्तिकारी भावना जागृत करने कि आवश्यकता हैं।
'क्रांति कि इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थाई तौर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए ,जिससे की रुदिवादी शक्तिया मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिए संगठित न हो सके |यह आवश्यक है की पुराणी व्यवस्था सदैव न रहे वह नई व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे ,जिससे की एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके |यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रखकर हम इन्कलाब जिंदाबाद का नारा ऊँचा करते है |

साभार भगतसिंह से दोस्ती पुस्तक से


सुनील दत्ता------

यह अजब है रोटी का खेल

यह अजब है रोटी का खेल
यह गजब है रोटी का खेल
कभी हंसाती है रोटिया
कभी रुलाती है रोटिया
अमीरों कि शान है रोटिया
अमीरों कि खिलवाड़ है रोटिया
हाड़तोड़ मेहनत कराती है रोटिया
फिर भी नसीब नही होती दो जून कि रोटिया
अमीरों के पास रहने का इसे है शगल
गरीबो कि अस्मत बेचती है रोटिया
यह अजब है रोटी का खेल
यह गजब है रोटी का खेल
कभी हंसाती है रोटिया
कभी रुलाती है रोटिया
मेहनतकश इंसानों का पसीना
लहू बनाकर खाती है रोटिया
आदमियों को एक जिन्दा लाश बनाती है रोटिया
कभी दिखाती है सपने यह रोटिया
कभी तोडती है सपने यह रोटिया
कभी तो सुंदर होगी यह दुनिया
यह एहसास दिलाती है रोटिया
सुनील दत्ता

चांद का कुर्ता / रामधारी सिंह "दिनकर"

एक बार की बात, चंद्रमा बोला अपनी माँ से
"कुर्ता एक नाप का मेरी, माँ मुझको सिलवा दे
नंगे तन बारहों मास मैं यूँ ही घूमा करता
गर्मी, वर्षा, जाड़ा हरदम बड़े कष्ट से सहता."

माँ हँसकर बोली, सिर पर रख हाथ,
चूमकर मुखड़ा

"बेटा खूब समझती हूँ मैं तेरा सारा दुखड़ा
लेकिन तू तो एक नाप में कभी नहीं रहता है
पूरा कभी, कभी आधा, बिलकुल न कभी दिखता है"
"आहा माँ! फिर तो हर दिन की मेरी नाप लिवा दे
एक नहीं पूरे पंद्रह तू कुर्ते मुझे सिला दे."

कुछ बाल कविताएँ ---------- देवी नांगरानी


गुड़िया रानी, गुड़िया रानी,
तू क्यों भई उदास
बन संवर कर आज है जाना
तुझे पिया के पास


ऐ री बंदरिया मेरी
पूंछ कहाँ है तेरी
ढूँढ उसे यूँ बाहर भीतर
नींद उड़ी है मेरी


कौए काका
पास में आजा
मुन्ना खाए
रोटी आजा


बंदर राजा
पूंछ हिला जा
मुन्ना रोया आज बहुत है
आकर उसे हंसा जा



आया आया चंदामामा
जाने क्यों कर चोरी चोरी
नील गगन से धरती पर ये
सुनने ममता की अब लोरी


जीवन नैया कर ले पार
है क्या जीवन बहती धार
दुख सुख मन के है आधार
सच का अपना अलग निखार
ममता देवी मेरा प्यार

कहां रहेगी चिड़िया -------- महादेवी वर्मा

कहां रहेगी चिड़िया ?
आंधी आई जोर-शोर से
डाली टूटी है झकोर से
उड़ा घोंसला बेचारी का
किससे अपनी बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ?
घर में पेड़ कहाँ से लाएँ
कैसे यह घोंसला बनाएँ
कैसे फूटे अंडे जोड़ें
किससे यह सब बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ?

स्वर्णमुकुट

आज हम विश्व के महान वैज्ञानिको को भूलते जा रहे है | जिन्होंने इस आधुनिक जीवन में आधुनिक संसाधनों , सुविधाओं , मालो सामानों और सेवाओं का उपयोग तथा उपभोग के लिए आविष्कार किये | हमे यह याद रखना चाहिए कि उन सबके खोज आविष्कार में विश्व के महान वैज्ञानिकों ने अपना जीवन लगा दिया | उन महान कार्यो के लिए अदम्य कर्मठता व त्याग के साथ उन्होंने अपना सारा जीवन उस उद्देश्य को समर्पित कर दिया |

आज उन्ही खोजो -अविष्कारों के फलस्वरूप विकसित हुए संसाधनों से देश दुनिया की धनाढ्य कम्पनिया अरबो -- खरबों कमाती जा रही है | विडम्बना यह कि उन खोजो -- अविष्कारों के फलस्वरूप बने आधुनिक मालो -- सामानों मशीनों सेवाओं पर देश -- दुनिया की दिग्गज कम्पनियों का नाम व ट्रेड मार्क तो है पर उनकी खोज आविष्कार करने वाले वैज्ञानिको का कही कोई नाम नही है | लोग कम्पनियों को जानते है पर उसे खोजने वाले वैज्ञानिकों को नही जानते | यह उन महान वैज्ञानिकों के प्रति घोर उपेक्षा व कृतघ्नता का परिलक्षण है | यह परिलक्षण न केवल धनाढ्य कम्पनियों द्वारा ही नही किया जा रहा है , बल्कि उनके उपभोग से सुख -- सुविधा भोगते जा रहे समाज खासकर आम प्रबुद्ध समाज द्वारा भी किया जा रहा है |
प्राकृतिक विज्ञान के पितामह कहे जाने वाले सर्वथा योग्य महान वैज्ञानिक आर्कमिडिज का जन्म ईसा से 287 से पहले यूरोप के सिसली नगर में हुआ था | उस समय वह के राजा ने देवताओं को भेट चढाने के लिए एक स्वर्ण मुकुट तैयार करवाया | मुकुट बहुत सुन्दर था | पर राजा को यह सन्देह हो गया कि इस स्वर्णमुकुट में मिलावट की गयी है | इसकी जांच के लिए उन्होंने अपने खोजी प्रतिभा के लिए प्रसिद्धि पाए आर्कमिडिज को बुलाकर मुकुट को बिना तोड़े ही उसमे किसी मिलावट की जानकारी का कार्यभार दे दिया |आर्कमिडिज दिन -- रात इस समस्या को सुलझाने के चिन्तन मनन में लग गये | एक दिन उसी चिन्तन में वे सार्वजनिक स्नानागार में पानी से भरे टब में नहाने के लिए गये | उनके टब में जाते ही पानी का एक हिस्सा बाहर बह गया | उसे देखकर वे तुरन्त इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यदि कोई वस्तु किसी द्रव में डुबोई जाय तो उसके भार में होने वाले कमी वस्तु द्वारा हटाए गये द्रव के भार के बराबर होती है | अपने इस वैज्ञानिक निष्कर्ष से आर्कमिडिज इतने प्रफुल्लित हुए कि टब से बाहर निकल कर यूरेका -- यूरेका ( पा लिया -- पा लिया ) कहकर दौड़ते हुए अपने घर की ओर भागे |
इसी सिद्दांत को खोजकर उन्होंने पानी से भरे बर्तन में पहले मुकुट को डुबोया | फिर मुकुट के भार के बराबर सोना डुबोया | दोनों बार विस्थापित पानी के भर में अन्तर को देखकर उनोहे मुकुट को बिना तोड़े यह बता दिया कि इसमें मिलावट की गयी है |आर्कमिडिज का यह खोज आज भी वस्तुओ का आपेक्षित घनत्व मापने के लिए प्रयोग किया जाता है | इसी आधार पर आर्कमिडिज ने वस्तुओ के तैरने का सिद्धांत भी प्रतिपादित किया | आर्कमिडिज ने ही सबसे पहले लीवर का सिद्धांत प्रस्तुत किया | लीवर और घिरनियो द्वारा वे माल से भरे जहाज को अकेले ही किनारे तक उठा लाये |
आर्कमिडिज ने अपनी खोजो को लेकर कई पुस्तके भी लिखी | उसमे '' आन दि स्फीयर एण्ड सिलेन्डर '' मेजरमेन्ट आफ दि सर्किल '' आन फ्लोटिंग बाडीज '' आन बैलेन्सज एण्ड लीवर्स |

एक युद्ध के बाद ईसा पूर्व 212 सदी में आर्कमिडिज का गृह नगर रोम के कब्जे में आ गया | आर्कमिडिज बहुत दुखी हुए | 75 वर्ष की उम्र में आर्कमिडिज अपने घर में बैठे जमीन पर कुछ ज्यामितीय आकृतिया बना रहे थे | तभी कुछ सशत्र रोमन सिपाही उनके घर में घुस गये | वे अपने काम में इतने तल्लीन थे कि उन्हें सिपाहियों के आने का कुछ पता ही नही चला और वे अपने काम में लगे रहे | जब सिपाही उनकी ओर बढ़े तो वे अचानक बोल उठे -- '' इन आकृतियों को मत बिगाडिये| इतना सुनते ही सिपाही ने अपना भाला उनके शरीर में भोक दिया | आर्कमिडिज की तत्काल मृत्यु हो गयी | उनकी कथा अमर है | उनके खोज और आविष्कार अमर है | क्योंकि उन्होंने अपने जीवन को मानव समाज को आगे बढाने के लिए समर्पित कर दिया न्योछावर कर दिया था |

-सुनील दत्ता
पत्रकार

हम जिनके ऋणी है -----------------------एक्स रेज के अविष्कारक -------- विल्हेलम कानराड रौटजन

एक्स रेज ( यानी एक्स किरणों ) का नाम जनसाधारण भी जानता है | इसका उपयोग चिकित्सा शास्त्र से लेकर अन्य दुसरे क्षेत्रो में भी बढ़ता जा रहा है | इसका आविष्कार प्रोफ़ेसर विल्हेलम कानराड रौटजन अपनी प्रयोगशाला में वैकुअम ट्यूब ( हवा निकालकर पूरी तरह से खाली कर दिए ट्यूब ) में बिजली दौड़ाकर उसके वाहय प्रभावों को देखने के लिए प्रयोग कर रहे थे | खासकर वे इस ट्यूब से निकलने वाले कैथोड किरणों का अध्ययन करनी चाहते थे | इसके लिए उन्होंने ट्यूब को काले गत्ते से ढक रखा था | जिससे उसकी रौशनी बाहर न जाए | प्रयोग के पूरे कमरे में अन्धेरा कर रखा था , ताकि प्रयोग के परिणामो को स्पष्ट देखा जा सके | ट्यूब में बिजली पास करने के बाद उन्होंने यह देखा कि मेज पर ट्यूब से कुछ दुरी पर रखा प्रतिदीप्तीशील पर्दा चमकने लगा |
रौटजन के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा | उन्होंने ट्यूब को अच्छी तरह से देखा | वह काले गत्ते से ढका हुआ था | साथ ही उन्होंने यह भी देखा कि ट्यूब के पास दूसरी तरफ पड़े बेरियम प्लेटिनोसाइनाइड के कुछ टुकड़े भी ट्यूब में विद्युत् प्रवाह के साथ चमकने लग गये है | रौटजन ने अपना प्रयोग कई बार दोहराया | हर बार नलिका में विद्युत् प्रवाह के साथ उन्हें पास रखे वे टुकड़े और प्रतिदीप्ती पर्दे पर झिलमिलाहट नजर आई | वे इस नतीजे पर पहुचे कि ट्यूब में से कोई ऐसी अज्ञात किरण निकल रही है , जो गत्ते की मोटाई को पार कर जा रही है | उन्होंने इस अज्ञात किरणों को गणितीय चलन के अनुसार एक्स रेज का नाम दे दिया | बाद में इसे रौटजन की अविष्कृत किरने रौटजन रेज का नया नाम दिया गया | लेकिन तब से आज तक रौटजन द्वारा दिया गया ' एक्स रेज ' नाम ही प्रचलन में है | बाद में रौटजन ने एक्स रेज पर अपना प्रयोग जारी रखते हुए फोटो वाले खीचने वाले फिल्म पर अपनी पत्नी अन्ना बर्था -- का हाथ रखकर एक्स रेज को पास किया | फोटो धुलने पर हाथ की हड्डियों का एकदम साफ़ अक्स फोटो फिल्म पर उभर आया | साथ में अन्ना बर्था के उंगलियों की अगुठी का भी अक्स आ गया | मांसपेशियों का अक्स बहुत धुधला था | फोटो देखकर हैरान रह गयी अन्ना ने खा कि मैंने अपनी मौत देख ली ( अर्थात मौत के बाद बच रहे हड्डियों के ढाचे को देख लिया |
एक्स रेज के इस खोज के लिए रौटजन को 1901में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र के लिए निर्धारित पहला नोबेल पुरूस्कार मिला | रौटजन ने वह पुरूस्कार उस विश्व विद्यालय को दान कर दिया | साथ ही उन्होंने अपनी खोज का पेटेन्ट कराने से भी स्पष्ट मना कर दिया और कहा कि वे चाहते है कि इस आविष्कार के उपयोग से पूरी मानवता लाभान्वित हो | रौटजन का जन्म 27 मार्च 1845 में जर्मनी के रैन प्रांत के लिनेप नामक स्थान पर हुआ था | उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हालैण्ड में हुई तथा उच्च शिक्षा स्विट्जरलैंड के ज्युरिच विद्यालय में हुई थी | यही पर उन्होंने 24 वर्ष की आयु में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की | वह से निकलकर उन्होंने कई विश्व विद्यालय में अध्ययन का कार्य किया | 1888 में वे बुर्जवुर्ग विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफ़ेसर नियुक्त किये गये | यही पर 1895 में उन्होंने एक्स रेज का आविष्कार किया | 1900 में वह म्यूनिख विश्वविद्यालय चले गये |
वह से सेवा निवृत्त होने के बाद म्यूनिख में 77वर्ष की उम्र में इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु हो गयी | जीवन के अंतिम समय में उन्हें ऑटो का कैंसर हो गया था | आशका जताई जाती है कि उन्हें यह बीमारी एक्स रेज के साथ सालो साल प्रयोग के चलते हुई थी |

बौनों की दुनिया

प्रकृति का रहस्य भी अनोखा है आज का इंसान इसे जितना सुलझाता है यह और उलझता जाता है | मानव विकास क्रम में विज्ञानं की दुनिया को अनोखा बनाया सारी सुविधाए हासिल की पर अभी तक बहुत सी ऐसी चीजे है जो मानव् से दूर है मानव् आज तक यह नही बता पाया कि मनुष्य बौने के रूप में जन्म क्यों लेता है यह आज भी अनुत्तरित प्रश्न है -- आइये आज बौनों की दुनिया में चलते है -------------------------------

रहस्य अभी सुलझा नही है कि क्यों दुनिया में बौने पैदा होते है | लेकिन इससे जुड़े तमाम किस्से सुर्खियों में रहते है | बौनों को लेकर अनेक चर्चित कहानिया भी लिखी गयी है | दुनिया के कुछ चर्चित बौनों की जिन्दगी पर कुछ बाते
इस दुनिया में बहुत से '' बौने '' ऐसे भी हुए है जो अपने आपमें बेमिशाल रहे | आप देखे 17 वी शताब्दी में आस्ट्रेलिया में '' फ्रेबा '' नामक ऐसे बौना हुआ जिसकी लम्बाई मात्र दस इंच थी , उसके गंजे सिर पर हरे रंग के आठ - दस बाल थे उसका वजन मात्र नौ किलो था | यह बौना एक सर्कस में काम करता था और दर्शको के सामने हैरत अंगेज भरे करतब करता था , वह कभी - कभी शेर और भालू से कुश्ती भी लड़ता था और उसकी पीठ पर खड़े होकर सवारी भी करता था |

आज से 250 वर्ष पूर्व जर्मनी के हेनर्ब शहर में एक अनोखा बौना पैदा हुआ था | जन्म से ही उसके हाथ - पैर न थे | उसके दोनों कन्धो से बिना नाख़ून के उगलियों जैसे मांस के कुछ टुकड़े उभर आये थे | उन्ही से वह उगलियों और हाथो का काम लेता था | हैरत की बात है , हाथ न होते हुए भी वह दाढ़ी बना लेता | पिस्तौल में गोली भरकर हवाई फायर भी कर देता था | यही नही , वह एक अच्छा चित्रकार भी था | जर्मनी के कई घरो की बैठको में इसकी हँसती मुस्कुराती तस्वीरे आज भी उस जगह की शान बनी हुई है |
स्पेन का '' जेनफर '' बौना सन 1802 में पैदा हुआ था उसकी मौत 1884 को हुई | मृत्यु के समय इस बौने की लम्बाई सिर्फ नौ इंच थी | जेनफर ने अदभुत प्रेम कविताएं लिखी थी जो आज भी स्पेन के प्रेमियों के लिए अविस्मर्णीय यादगार तोहफे के रूप में अमर- कृति बनी हुई है | संसार का सबसे चर्चित बौना 9 अगस्त 1815 को इंग्लैण्ड के '' विर्चा '' गाँव में पैदा हुआ था | 15 वर्ष की आयु में उसका वजन मात्र 28 किलो पौंड तथा कद सिर्फ सवा सात इंच था | यह बौना अक्सर अपना दादा जी की लम्बी कोट में बैठकर घुमने जाता था | न्यूयार्क का '' हडसन रौबरी '' तो इतिहास का प्रसिद्द अनोखा चरित्र है | वह चार्लुस प्रथम की गुप्तचर सेना में जासूस था | उसकी लम्बाई 12 इंच तथा वजन 42 पौंड था | इसकी मुछो की लम्बाई 13 इंच थी | वह अक्सर अपनी मुछो को बांधकर रखता था | पुरुषो की तरह महिलाये भी बौनी होती है , सिसली की मिस ' रोलिना '' का कद 18 इंच था | वह 10 वर्ष तक जीवित रही | उसका अस्थि पंजर आज भी लन्दन के '' कालेज आफ सर्जन '' में एक कांच के जार में सुरक्षित है |

मिस ' एकर्स कैरी '' विश्व की सबसे मोती बौनी महिला थी | उनका कद 16 इंच था , लेकिन वजन 260 पौंड था | अपने दोहरे आकर्षण के कारण वह अपने समय की एक चर्चित महिला बन गयी थुई |
रूस की बौनी युवती ' ब्रेनी '' तो खुबसूरत तो थी ही | उसकी लम्बाई 26 इंच थी वह 18 वर्ष तक जीवित रही | वह अपने सलोने बदन पर हमेशा ऐसे परिधान पहनती कि राह चलते लोग उसे मुड- मुडकर बार - बार देखा करते ---------------------------------- कबीर


------------------------------------------------------------------------साभार दैनिक '' आज ''

हथियारों का अन्तराष्ट्रीय बाजार और भ्रष्टाचार

बढ़ते रक्षा बजट के जरिये देश की सुरक्षा का कोई काम हो या न हो , लेकिन हथियार कम्पनियों को जबर्दस्त लाभ दिया जा रहा है तथा उनके वैश्विक व्यापार बाजार की सुरक्षा भी की जा रही है |

आधुनिक और अत्याधुनिक हथियारों के अन्तराष्ट्रीय बाजार के व्यापार को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए
बढ़ाने की कोशिश है पर यह सच नही है बल्कि पूरी दुनिया के हथियारों के सौदागरों को बड़ी पूंजी का मालिक बनाया जा रहा है | अपितु यह राष्ट्र पर निर्भर बनाने व साथ -- साथ देश को असुरक्षित करता जा रहा है | एक अन्तराष्ट्रीय संस्थान की रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व व्यापार व आयात निर्यात में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार हथियार उद्योग में होता है | प्रकाशित सूचनाओं के अनुसार हथियारों के विश्व व्यापार में विश्व की कुल 10 कम्पनियों का वर्चस्व है | यह बात जग जाहिर है क़ि ये कम्पनिया अमेरिका , इंग्लैण्ड , रूस ,फ्रांस , जर्मनी जैसे देशो की साम्राज्यी कम्पनिया है | विश्व पैमाने के हथियार उद्योग में इन्ही कम्पनियों का वर्चस्व है | इनमे कोई व्यापारिक होड़ नही है | यह होड़ इन कम्पनियों के बीच है | राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इन कम्पनियों के आधुनिक हथियारों एवं अन्य साजो -- सामानों की माँग विश्व के सभी पिछड़े व विकासशील देशो में न केवल बरकरार है बल्कि इन देशो के बीच मौजूद आपसी तनाव झगड़ो व युद्धों के कारण यह माँग बढती जा रही है | उदाहरण भारत -- पाकिस्तान के बीच तनाव व युद्ध की बारम्बार की स्थितियों के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दोनों देशो द्वारा रक्षा बजट बढाने के साथ हथियारों की खरीद को तेजी से बढाया जाता रहा है | रक्षा सौदों में सर्वाधिक भ्रष्टाचार के कारण में एक तो आधुनिक हथियार व अन्य साजो सामान के उत्पादन व व्यापार में साम्राज्यी कम्पनियों का ही विश्वव्यापी एक छत्र राज फिर निसंदेह: आपसी होड़ | इन आधुनिक हथियारों के उत्पादन व व्यापार में कम्पनियों द्वरा
अधिकाधिक मूल्य अर्थात उनके वास्तविक मूल्य से कई गुना ज्यादा वसूला जाता है जो अरबो में नही बल्कि खरबों में पहुंचता है , इस लिए इस मूल्य से करोड़ो , अरबो का कमीशन खोरी देने का काम भी आम तौर पर होता रहता है | आज से 25 वर्ष पहले बोफोर्स तोप में 60 करोड़ के कमीशन के साथ करोड़ो की दलाली की भी चर्चा बार - बार होती रही | इस भ्रष्टाचार का दुसरा बड़ा आधार विश्व के भारत , पाक जैसे लागभग 150 विकासशील पिछड़े देशो के बीच आपसी तनाव तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हथियार कम्पनियों से अधिकाधिक हथियारों व साजो-- सामानों की उच्च मूल्यों पर बढाकर खरीदारी की जाती रही है | इसी के साथ रक्षा सौदों में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बरती जा रही गोपनीयता भी रक्षा सौदों के भ्रष्टाचार को और अधिक बढावा देने का एक कारण यह भी है |
रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार अन्तराष्ट्रीय स्तर की दलाली से लेकर , किसी देश के मंत्रियों , सांसदों , उच्च स्तरीय सैन्य व गैर सैन्य अधिकारियों को करोड़ो की दलाली कमीशन देने तक ही सीमित नही है , बल्कि अन्य रूपों में भी मौजूद है उदाहरण , ये साम्राज्यी कम्पनिया अपने देशो के अवकाश प्राप्त उच्च अधिकारियों से लेकर खासकर रक्षा अधिकारियों से लेकर खरीदार देशो के अवकाश प्राप्त रक्षा अधिकारियो को अपना स्थायी वेतन भोगी सेवक व दलाल बना लेती है | ताकि सौदों को पटाने में अपने देश के रक्षा मंत्रालय और सरकार पर खरीददार देशो के रक्षा मंत्रालय और सरकार पर इन पूर्व संबंधो एवं प्रभावों का व्यापारिक इस्तेमाल किया जा सके | विदेशी पूंजी व तकनीक पर निर्भर और उनसे साठ -- गाठ करती रही भारत जैसे देशो की बड़ी कम्पनिया भी विभिन्न साम्राज्यी हथियार कम्पनियों की वकालत में जुट जाती है | इसके अलावा साम्राज्यी हथियार कम्पनियों द्वारा राजनितिक पार्टियों को अधिकाधिक चंदा देने से लेकर अपने देशो के रक्षा मंत्रियों , सांसदों आदि को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कमिशन भेट देना भी हथियार व्यापार का अन्तराष्ट्रीय दस्तूर बना हुआ है | जाहिर सी बात है की करोड़ो अरबो का यह भ्रष्टाचार हथियारों के अन्तराष्ट्रीय बिक्री व्यापार की कमाई के जरिये ही किया जाता है | इस कमाई का अंदाजा भारत -- पाक जैसे देशो के रक्षा बजट से लगाया जा सकता है , जो साल - दर-- साल बढ़ता जा रहा है | भारत में भी देश का बढ़ता बजट का 15 % से उपर पहुंचता है | लाखो -- करोड़ो के इस बजट का लगभग 60 % से 70 % हिस्सा अन्तराष्ट्रीय हथियार कम्पनियों के पास पहुंचता है | फिर बीते समय के साथ अधिकाश पुराने हथियार धरे - के धरे रह जाते है | उनकी जगह साम्राज्यी कम्पनिया अपनी नयी तकनीकि खोज -- प्रयोगों के जरिये नए आधुनिक हथियाओ को आगे ला देती है उसे खरीदने के जरिये दवाव डालने लग जाती है | फलस्वरूप बढ़ते रक्षा बजट के जरिये देश की सुरक्षा का कोई काम हो या न हो , लेकिन हथियार कम्पनियों के अधिकाधिक लाभ ( एकाधिकारी लाभ ) को तथा उनके वैश्विक व्यापार बाजार की सुरक्षा जरुर हो जाती है | साथ ही '' सुरक्षा '' होती है उन दलालों कमीशनखोरो की , जिन्हें कम्पनी अपने लाभ का एक छोटा सा हिस्सा करोड़ो की रकम के रूप में खिला --- पिला देती है | यह काम केवल हथियार बेचने वाली साम्राज्यी कम्पनिया ही नही करती है , बल्कि सभी क्षेत्रो की साम्राज्यी कम्पनिया करती है | ऐसा करना वस्तुत: उनके साम्राज्यी चरित्र का अहम हिस्सा है | अपने वैश्विक व्यापार बिक्री के साथ वैश्विक बाजार को एकाधिकार बढाने के लिए उपरोक्त भ्रष्टाचारी हथकंडे अपनाना भारत -- पाक जैसे देशो की सरकारों , सांसदों , मंत्रियों तथा आला अधिकारियो को पोर -- पोर से भ्रष्ट बनाना , उनकी चारित्रिक विशेषता है |
साम्राज्यी कम्पनियों का यह लुटेरा व भ्रष्टाचारी चरित्र इस देश को देश के जनसाधारण को खोखला करता जा रहा है | इसके अलावा विदेशी कम्पनियों के साथ गठ - जोड़ करती देश की बड़ी कम्पनिया भी यही काम करती रही है | देश की सत्ता सरकारे व अन्य हुक्मती हिस्से भी इन्हें बहुराष्ट्रीय व देशी कम्पनियों के हितो को बढाने और उसकी सुरक्षा करने में लगे रहे है | देश की आत्म निर्भरता तथा रक्षा -- सुरक्षा अब इनकी चिंता का मामला नही रह गया है | फल स्वरूप राष्ट्र व राष्ट्र का जन साधारण अधिकाधिक असुरक्षित होता जा रहा है | न ही राष्ट्र की आंतरिक एकता व सुरक्षा मजबूत हो पायी और न ही वाह्य सुरक्षा ही | इसका सबूत आंतरिक व क्षेत्रीय उथल - पुथल व अलगाववादी झगड़ो -- विवादों से लेकर वाह्य घुस - पैठियो आदि के रूप में मौजूद है | साफ़ दिख रहा है की आधुनिक और अत्याधुनिक हथियारों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार के जरिये बढाया जा रहा मामला राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में नही जा रहा है बल्कि वह राष्ट्र को पर निर्भर बनाने के साथ -- साथ अधिकाधिक असुरक्षित भी करता जा रहा है | आज फिर इस देश के आम --- आवाम को जागना होगा और मुझे कामरेड बल्ली सिंह चीमा की यह लाइन याद आ गयी >>>>>>>>>>>>>>>>>>>
जनता के हौंसलों की सड़कों पर धार देख ।
सब-कुछ बदल रहा है चश्मा उतार देख ।

जलसे-जुलूस नाटक, हर शै पे बन्दिशें,
करते हैं और क्या-क्या भारत के ज़ार देख।

तू ने दमन किया तो हम और बढ़ गए,
पहले से आ गया है हम में निखार देख ।

हैं बेलचों, हथौड़ों के हौंसले बुलन्द,
ये देख दु्श्मनों को चढ़ता बुखार देख ।

तेरी निजी सेनाएँ रोकेंगी क्या इन्हें,
सौ मर गए तो आए लड़ने हज़ार देख ।

सच बोलना मना है गाँधी के देश में,
फिर भी करे हिमाक़त ये ख़ाकसार देख ।
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक